नाचने वालों की आजीविका पर ताला: वे कलाकारा है.. दिल्ली में डांस बार बंदी का असर

दिल्ली की रंगीन रातों की चमक फीकी पड़ गई है, और संगीत की धुनें अब खामोश हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने हाल ही में डांस बार्स पर सख्त कार्रवाई शुरू की है, जिसने शहर के मनोरंजन उद्योग में हलचल मचा दी है। इस कदम का उद्देश्य कथित तौर पर “अश्लीलता” और “अनैतिक गतिविधियों” को रोकना है, लेकिन इसने आजीविका, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और एक पूरे पेशे के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रहों पर तीखी बहस छेड़ दी है। यह धारणा कि डांस बार्स में काम करने वाली महिलाएं अप्रत्यक्ष रूप से देह व्यापार में लिप्त हैं, गलत है। हकीकत इससे कहीं जटिल है—यह कला, आर्थिक जीविका और सामाजिक तिरस्कार के बीच संघर्ष की कहानी है।

अचानक कार्रवाई

2025 की शुरुआत में, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने नाइटलाइफ को नियंत्रित करने पर जोर दिया। डांस बार्स को “विश्वस्तरीय शहर” की छवि के अनुरूप बनाने के लिए निशाना बनाया गया। महाराष्ट्र की तर्ज पर, दिल्ली में कॉनॉट प्लेस, हौज खास और ग्रेटर कैलाश जैसे इलाकों में डांस बार्स पर छापेमारी शुरू हुई। लाइसेंसिंग नियमों के उल्लंघन और “अश्लील प्रदर्शन” के आरोपों के आधार पर कई बार बंद कर दिए गए। बार मालिकों पर भारी जुर्माना और कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में नवी मुंबई में हुई एक छापेमारी, जहां 40 महिलाओं को “बचाया” गया और 46 लोगों पर गैर-कानूनी गतिविधियों के लिए मामला दर्ज किया गया, इस कार्रवाई का एक उदाहरण है। दिल्ली में डांस बार्स पर कोई नया कानून नहीं बना, लेकिन सख्त लाइसेंसिंग नियमों और आकस्मिक निरीक्षणों ने इनका गला घोंट दिया है। सरकार का तर्क है कि यह कदम “महिलाओं की गरिमा” की रक्षा और सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ गतिविधियों को रोकने के लिए है। हालांकि, इस कदम की आलोचना इसे नैतिक दखलंदाजी और कमजोर तबके पर हमले के रूप में की जा रही है।

मानवीय कीमत: नर्तकियों का अनिश्चित भविष्य** इस विवाद के केंद्र में हैं वे महिलाएं जो डांस बार्स में प्रदर्शन करती थीं। उनकी कला और आर्थिक योगदान को अक्सर सामाजिक कलंक के नीचे दबा दिया जाता है। कई महिलाओं के लिए डांस बार्स आय का वैध स्रोत थे, जहां वे बॉलीवुड-प्रेरित नृत्य, शास्त्रीय नृत्य और समकालीन कोरियोग्राफी के जरिए अपनी प्रतिभा दिखाती थीं। ज्यादातर हाशिए पर रहने वाली पृष्ठभूमि से आने वाली ये महिलाएं दिल्ली जैसे शहर में आर्थिक स्वतंत्रता का एक दुर्लभ अवसर पाती थीं, जहां अकुशल या अर्ध-कुशल महिलाओं के लिए रोजगार के विकल्प सीमित हैं। सानिया (बदला हुआ नाम), एक 28 वर्षीय नर्तकी, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे से हैं। पिछले पांच सालों से वह दक्षिण दिल्ली के एक मशहूर बार में नृत्य करती थीं और अपनी कमाई से परिवार का भरण-पोषण करती थीं। “यह मेरा मंच था,” वह कांपती आवाज में कहती हैं, उस रात को याद करते हुए जब उनके कार्यस्थल पर छापा पड़ा। “उन्होंने हमें अश्लील कहा, लेकिन हम सिर्फ नृत्य कर रहे थे। मैं अपना शरीर नहीं, अपनी कला बेच रही थी।” सानिया का भविष्य अब अनिश्चित है, क्योंकि उन्हें उनकी पिछली कमाई के बराबर कोई दूसरा काम नहीं मिल रहा। कई नर्तकियों की तरह, उन्हें डर है कि वे कम वेतन वाले अस्थिर नौकरियों या उन अवैध अर्थव्यवस्थाओं में धकेल दी जाएंगी, जिनसे सरकार उन्हें बचाने का दावा करती है। यह धारणा कि डांस बार्स देह व्यापार के अड्डे हैं, एक गलत रूढ़ि है, जिसे नर्तकियां सिरे से खारिज करती हैं। “यह हमें खारिज करने का आसान तरीका है,” रोमा (बदला हुआ नाम), एक अन्य नर्तकी कहती हैं, जो अब बेरोजगार हैं। “लोग हमारी मेहनत, हमारे डिजाइन किए हुए परिधान, हमारे चुने हुए संगीत को नहीं देखते। वे बस सबसे बुरा मान लेते हैं।” 2006 में बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले सहित कई अध्ययनों और अदालती निर्णयों ने इस धारणा को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया कि डांस बार्स वैध व्यवसाय हैं और इन पर प्रतिबंध आजीविका के अधिकार का उल्लंघन है।

बार मालिकों की मुश्किलें

बार मालिकों के लिए भी यह कार्रवाई तबाह करने वाली रही है। दिल्ली में डांस बार चलाना पहले से ही महंगा था, जिसमें ऊंचे लाइसेंसिंग शुल्क, कर और अन्य खर्चे शामिल थे। अस्पष्ट नियमों की अचानक सख्ती ने कई मालिकों को नियमों का पालन करने में असमर्थ बना दिया। उल्लंघन के लिए 10 लाख रुपये तक के जुर्माने और बार-बार उल्लंघन पर दोगुने-तिगुने दंड का सामना करना पड़ रहा है। राकेश शर्मा (बदला हुआ नाम), जो कॉनॉट प्लेस में एक दशक से डांस बार चला रहे थे, अब दिवालियापन के कगार पर हैं। “हमने हर नियम का पालन किया—अग्नि सुरक्षा, ध्वनि सीमा, सब कुछ,” वह कहते हैं। “लेकिन निरीक्षणों में नई-नई समस्याएं निकाल ली जाती थीं। ऐसा लगता है जैसे वे हमें खत्म करना चाहते हैं।” शर्मा के बार में 15 नर्तकियां और 20 अन्य कर्मचारी थे, जो अब बेरोजगार हैं। इस कार्रवाई का असर बारटेंडरों, सुरक्षा कर्मियों और संगीतकारों तक पहुंचा है, जो नाइटलाइफ अर्थव्यवस्था पर निर्भर थे। आर्थिक नुकसान भी गंभीर है। डांस बार्स मध्यम वर्ग, पर्यटकों और स्थानीय पेशेवरों के लिए आकर्षण का केंद्र थे, जो दिल्ली की जीवंत नाइटलाइफ और स्थानीय व्यवसायों जैसे रेस्तरां और टैक्सियों को बढ़ावा देते थे। इनके बंद होने से शहर की सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना में एक खालीपन आ गया है।

ग्राहकों का नुकसान: एक सामाजिक मंच का अंत

ग्राहकों के लिए डांस बार्स केवल मनोरंजन स्थल नहीं थे, बल्कि सामाजिक केंद्र थे, जहां लोग आराम करने, उत्सव मनाने और जुड़ने के लिए आते थे। हाई-एंड क्लबों या पबों के विपरीत, डांस बार्स दिल्ली की विविध आबादी के लिए सुलभ और समावेशी स्थान थे। “यह सिर्फ नृत्य के बारे में नहीं था,” हौज खास के एक बंद बार के नियमित ग्राहक विक्रम कहते हैं। “यह माहौल के बारे में था—संगीत, ऊर्जा और जीवंतता का हिस्सा होने का एहसास।” प्रतिबंध के बाद ग्राहक अब भूमिगत पार्टियों या महंगे स्थानों की ओर रुख कर रहे हैं, जिनमें वही सांस्कृतिक आकर्षण नहीं है। कई लोग इस विशिष्ट भारतीय मनोरंजन के नुकसान पर शोक मना रहे हैं, जहां बॉलीवुड की धुनों और जीवंत प्रदर्शनों ने साझा खुशी का माहौल बनाया था। “दिल्ली की नाइटलाइफ बेजान हो रही है,” एक युवा कहते हैं, जो नर्तकियों को कॉस्मेटिक्स व्यवसाय शुरू करने में मदद करता है। “वे उस चीज को छीन रहे हैं, जिसने इस शहर को मजेदार बनाया था।”

नैतिक बहस: कलंक बनाम हकीकत

बीजेपी सरकार की कार्रवाई एक व्यापक नैतिक एजेंडे में निहित है, जो महाराष्ट्र में डांस बार्स पर दशकों से चल रही कानूनी लड़ाई की याद दिलाती है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में डांस बार्स पर प्रतिबंध को रद्द करते हुए सरकार की आलोचना की थी। फिर भी, सरकारें सार्वजनिक भावनाओं और सांस्कृतिक मूल्यों का हवाला देकर प्रतिबंध लगाती रहती हैं। आलोचकों का कहना है कि यह दृष्टिकोण पाखंड से भरा है। “सरकार महिलाओं की गरिमा की बात करती है, लेकिन इन महिलाओं के श्रम की गरिमा को अनदेखा करती है,” एक महिला अधिकार कार्यकर्ता कहती हैं। “डांस बार्स बंद करके वे किसी की रक्षा नहीं कर रहे—वे महिलाओं को अधिक खतरनाक, अनियंत्रित स्थानों में धकेल रहे हैं।” यह धारणा कि नर्तकियां अवैध गतिविधियों में शामिल हैं, न केवल निराधार है, बल्कि असल मुद्दों—सामाजिक सुरक्षा की कमी, महिलाओं के लिए सीमित रोजगार अवसर और उद्योग के पारदर्शी नियमन की विफलता—से ध्यान हटाती है।

आगे का रास्ता?

जब तक दिल्ली के डांस बार्स बंद रहेंगे, सवाल बना रहेगा: अब क्या? सानिया और रोमा जैसी नर्तकियों के लिए तत्काल प्राथमिकता ऐसी नौकरी ढूंढना है, जो उनकी गरिमा और आर्थिक स्थिरता को बनाए रखे। शर्मा जैसे मालिकों के लिए यह एक ऐसे नियामक जाल से निपटने की चुनौती है, जो उनके व्यवसाय को दबाने के लिए बनाया गया लगता है। और ग्राहकों के लिए, यह दिल्ली के बहुलवादी дух को फिर से जीवंत करने की बात है। महाराष्ट्र में सुप्रीम कोर्ट के फैसले एक संभावित रास्ता दिखाते हैं। पूर्ण प्रतिबंध के बजाय, कोर्ट ने सख्त नियमों की वकालत की थी—नर्तकियों की संख्या पर सीमा, अनिवार्य लाइसेंसिंग और श्रमिकों की सुरक्षा के उपाय। ऐसा दृष्टिकोण सरकार की चिंताओं और नर्तकियों व मालिकों के अधिकारों के बीच संतुलन बना सकता है। इसके अलावा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और वैकल्पिक रोजगार के अवसर नर्तकियों को उद्योग छोड़ने में मदद कर सकते हैं, अगर वे ऐसा चाहें। फिलहाल, इस प्रतिबंध ने दिल्ली के सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य में एक खालीपन छोड़ दिया है। शहर की नीयन रोशनी में नाचने वाली महिलाएं, फलते-फूलते व्यवसाय बनाने वाले मालिक और उन स्थानों में खुशी पाने वाले ग्राहक—सभी एक ऐसी नीति के शिकार हैं, जो सहानुभूति या सबूतों के बजाय नैतिक निर्णयों पर आधारित है। जैसा कि सानिया कहती हैं, “उन्होंने हमारा मंच छीन लिया, लेकिन हमारा जज्बा नहीं। हम किसी न किसी तरह नाचते रहेंगे।”

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